Vande Bharat Save India Review: इलेक्शन के माहौल में ‘जिहाद’ पर रिएक्शन

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Telugu Vande Bharat Save India Movie Review: मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव के ऐन मौके पर 4 साल के इंतजार और कड़े विरोध के बावजूद भारत में नागरिकता संशोधन कानून-CAA (Citizenship Amendment Act) लागू कर दिया. CAA को लेकर सबसे अधिक मिर्ची पाकिस्तान को लगी है. 1947 में देश के विभाजन और धर्म के आधार पर पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के बावजूद कथित तौर पर भारत में ‘देश विरोधी तत्व’ सक्रिय रहे हैं. तेलुगु फिल्म ‘वंदे भारत सेवा इंडिया-Vande Bharat Save India’ इसी ज्वलंत विषय को उठाती है.

करीब 2 घंटे 12 मिनट की ये एक्शन-ड्रामा फिल्म इसलिए चर्च में है, क्योंकि यह ऐसे समय में रिलीज हुई है, जब दुनिया के एक बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में आम चुनाव-2024 होने जा रहे हैं. इस आम चुनाव में ‘समाज में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण’ एक बड़ा मुद्दा माना जा रहा है. हाल में पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी आम चुनाव हुए हैं. वहां के चुनाव में भी मोदी सरकार की कार्यशैली की चर्चाएं होती रहीं.

पिछले कुछ सालों में ‘जिहाद’ और ‘हिंदू-मुस्लिम’ मुद्दे को लेकर कई विवादित और चर्चित फिल्में सामने आई हैं. इनमें वर्ष-2022 में आई ‘द कश्मीर फाइल्स’ और वर्ष-2023 में रिलीज हुई ‘द केरला स्टोरी’ इस लिस्ट में टॉप पर हैं. चूंकि इन फिल्मों को वास्तविक घटनाओं (Real Stories) पर आधारित बताया गया, लिहाजा इन्हें लेकर देश-दुनिया में बहस शुरू हुईं. इन फिल्मों की देखादेखी और भी कई फिल्में आईं, मगर उन पर उतनी चर्चा नहीं हुई.

अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति और देश के विभाजन के बाद से ही भारतीय सिनेमा आतंकवाद पर फिल्म बनाता आया है. लेकिन पिछले कुछ सालों से फिल्ममेकिंग में आतंकवाद के साथ ‘जिहाद’ और ‘हिंदू-मुस्लिम’ विषय भी गूंथे जाने लगे हैं. ‘वंदे भारत सेव इंडिया’ इसी का एक उदाहरण हैं. हालांकि, इसकी मेकिंग सिर्फ ‘मनोरंजन श्रेणी’ तक ही सीमित कही जा सकती है. स्टोरी लाइन, कॉस्टिंग, डायलॉग्स, सिनेमेटोग्राफी आदि के लिहाज से यह साधारण फिल्म ही साबित हुई है.

‘वंदे भारत सेव इंडिया’ एक तरह से दो टाइटल का फ्यूजन है, जो देशप्रेम और भारत को जाति-धर्म के आधार पर एक सूत्र में पिरोने का आह्वान करते हैं. बंटवारे के बाद से ही भारत-पाकिस्तान के बीच रिश्ते अच्छे नहीं रहे हैं. खासकर इस्लामिक आतंकवाद को लेकर भारत हमेशा से पाकिस्तान के खिलाफ आवाज उठाता रहा है. यह फिल्म भी आतंकवाद के रास्ते पर चल रहे युवाओं को सही रास्ते पर लाने की कोशिश दिखाती है.

फिल्म ओवरऑल साधारण ही बन पड़ी है. फिल्म के मुख्य कलाकारों- कौशिक मेकाला, सुमन, जेनी, संध्या जनक, अंकिता मुलेर, टार्जन लक्ष्मी आदि का अभिनय ठीकठाक ही है. खासकर सुमन बाकी कलाकारों पर हावी नजर आए.

फिल्म का निर्देशन मल्लम रमेश ने किया है. उन्होंने ही इसे प्रोड्यूस किया है. निर्देशन के लिहाज से फिल्म में कसावट नहीं दिखती. विषय में कुछ नयापन नहीं होने से दर्शकों को बांधने में भी सफल नहीं हो सकी. पढ़े-लिखे युवाओं का आतंकवादी संगठनों द्वारा ब्रेन वॉश करके उन्हें जिहाद में ढकेलने का विषय पिछले कुछ सालों से मीडिया की सुर्खियों में बना हुआ है. इस फिल्म में भी इसे ही उठाने की कोशिश की गई है. हालांकि यह उतना प्रभावी नहीं हो सका. सिनेमेटोग्राफी भी उतनी असरकारक नहीं है. साउथ के सिनेमा में स्टंटबाजी का अपना एक अलग अंदाज होता है, इस फिल्म में वैसा कुछ भी नजर नहीं आया.

एक गंभीर मुद्दे पर बनी फिल्म में कॉमेडी का तड़का लगाकर दर्शकों को रिझाने की कोशिश कुछ हद तक सफल कही जा सकती है. फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक भी साधारण श्रेणी का ही है. गाना अवश्य सुनने लायक है. कास्टिंग पर अधिक मेहनत की जानी थी, जिससे सिनेमा को रियलिस्टिक बनाया जा सकता था. हालांकि ऐसा दिखा नहीं.

जिहाद या आतंकवाद जैसे मुद्दे पर सैकड़ों फिल्में आ चुकी हैं. चुनावी मौसम देखते हुए वंदे ‘वंदे भारत सेव इंडिया’ के जरिये फिल्ममेकर ने जनता की भावनाओं को भुनाने का प्रयास किया है. आम चुनाव में आतंकवाद भी एक अहम मुद्दा रहता है.

बहरहाल, जिन्हें आतंकवाद जैसे मुद्दे पर आधारित फिल्में देखने में आनंद आता है, वे इसे देख सकते हैं. हालांकि जो दर्शक इस विषय पर गंभीर फिल्में देखने के इच्छुक रहते हैं, उन्हें शायद ये फिल्म पसंद न आए. कह सकते हैं कि यह फिल्म विशेष श्रेणी में शामिल नहीं हो सकती है.

डिटेल्ड रेटिंग

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Tags: Film review, South cinema



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